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कविता

भूख

फ़रीद ख़ाँ


भूख बनाती है मूल्य।
इस पार या उस पार होने को उकसाती है।
नियति भूख के पीछे चलती है। ढा देती है मीनार।

सभी ईश्वर, देवी-देवता, और पेड़ पौधे, स्तब्ध रह जाते हैं।

भूख रचती है इतिहास...

 


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